विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 22)
"आखिर तुम्हारे इस जीवन की भागमभाग थम ही गयी डार्क लीडर! मृत्यु की चाहत तुम्हें मेरे समक्ष ले ही आयी।" सुपीरियर लीडर, डार्क लीडर के समक्ष खड़ा था, दोनों के बीच से बायीं ओर वह विशाल स्तम्भ जिसके ऊपर अंधेरे का प्रतीक चिन्ह था वह दहकता हुआ प्रतीत हो रहा था परन्तु उसमें से अद्भुत शीतलता भी महसूस हो रही थी। दोनों ही सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने खड़ी थी, डार्क गार्ड्स के सिर की लपटें तेज होती गईं, सुपीरियर आर्मी पूर्ण रूप से स्याह-नीले रंग में वायु के समान खड़ी थी, किसी का भी अस्तित्व न होते हुए एक बड़ा भयानक अस्तित्व धारण किया हुआ था। वातावरण में डर का साया बढ़ता जा रहा था, दोनो ही सेनाएं अपने स्वामी के लिए अपने सामने वाले को अत्यंत क्रूर एवं दर्दनाक मौत देने के लिए उत्सुक थी।
"मृत्यु की चाहत अवश्य ही खींच लाई है सुपीरियर लीडर! पर अंत किसका होगा यह तुझे शीघ्र ही पता चल जाएगा।" डार्क लीडर उसकी आँखों में झांकते हुए बोला। दोनों की आँखे ही अंगारों के समान दहक रही थी।
"क्या तुम्हें डर लगता है डार्क लीडर?" कहते हुए सुपीरियर लीडर जोर जोर से हँसने लगा।
"डर का साया भी डार्क लीडर के पास नही फटकता सुपीरियर लीडर! अब बेवजह बहस मत कर देख मेरे डार्क गार्ड्स तेरी सुपीरियर आर्मी का क्या हश्र करते हैं।" डार्क लीडर अपनी उंगलियों को हिलाते हुए बोला, अचानक उनमें से आग जलने लगी।
"हम तो तुम्हें तबाह ही करते जा रहे थे डार्क लीडर! अच्छा हुआ जो तुम अंधेरे के इस महान प्रतीक चिन्ह ओमेगा स्तम्भ के पास मिल गए, आओ अब इसे अंत करें।" सुपीरियर लीडर, अपने हाथों को बांधते हुए हवा में उठते हुए बोला, डार्क लीडर हवा में उड़कर तेज गति से उसकी दिशा में बढ़ गया, परन्तु अगले ही पल सुपीरियर लीडर अपने स्थान से गायब हो गया जिस कारण डार्क लीडर वहां से काफी दूर चला गया।
दोनों सेनाएं आपस में टकरा चुकी थी। आज वीभत्सता ने अपनी चरम सीमा पार कर लिया था, न कोई धर्म, न कोई नियम, न ही कोई युद्ध की कला। इस युद्ध में सिर्फ और सिर्फ निर्दयता, निर्ममता और अपने स्वामी को ईश्वर के पद का उत्तराधिकारी मानना ही सबकुछ था।
डार्क गार्ड्स, सुपीरियर आर्मी पर चींटी तरह चिपट गए, सुपीरियर आर्मी, डार्क गार्ड्स की इस बढ़ी हुई शक्ति से हैरान थे, जिसे भी अवसर मिल रहा था वह अपनी निर्दयता को सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ता था। विशालकाय दरिंदों एवं जलते सिर वाले शैतानों से भरा यह मैदान उनके टकराने से कांपने लगा था।
सुपीरियर आर्मी एवं लीडर के पास विस्तार की शक्तियों का अंश था तो वहीं डार्क गार्ड्स एवं लीडर में अंधेरे के त्रयी महाशक्तियों की शक्ति समाई हुई थी। अंधेरे के ये जीव सदियों से उजाले से छिपकर अंधेरे में ही अपनी दरिंदगी का नमूना दिखाते थे परन्तु आज ये एक दूसरे पर ही जोर आजमाइश कर रहे थे। यह क्षेत्र सुपीरियर आर्मी के विक्षिप्त दुरात्माओं के बिखरे कणों एवं डार्क गार्ड्स की बुझी हुई खोपड़ियो के धूमिल अस्थि टुकड़ो से पटा हुआ नजर आने लगा था। वहीं डार्क लीडर और सुपीरियर लीडर अपनी अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे। दोनों को अपनी सेना के नष्ट होने का कोई अफसोस नही था, डार्क लीडर ने सुपीरियर लीडर की ओर जलते स्याह ऊर्जा से प्रहार किया किंतु सुपीरियर लीडर वहां से अदृश्य होकर दूसरे जगह प्रकट हुआ। सुपीरियर लीडर, डार्क लीडर को बुरी तरह छका रहा था, डार्क लीडर के बढ़ते क्रोध के कारण उसके सिर की लपटें और तेज होती जा रही थीं, जिसकी आँच अब सुपीरियर लीडर भी महसूस कर रहा था।
"बस! अब बहुत हुआ" डार्क लीडर ने सुपीरियर लीडर पर ऊर्जावार किया, सुपीरियर लीडर उसकी तरफ बढ़ता हुआ उसे अपनी स्याह ऊर्जा से जकड़ लिया। डार्क लीडर लगातार वार करके थक चुका था, सुपीरियर लीडर उसपर अपनी पकड़ मजबूत करता ही गया।
"न जाने कितने वर्षों से तुम्हारा मुझसे सामना नही हुआ डार्क लीडर! अन्यथा तुम यह गलती कभी नही करते।" सुपीरियर लीडर की सुर्ख आँखे ज्वालामुखी की भांति भभक रही थी, उसने अपनी मुट्ठियां भींच दी। डार्क लीडर को असहनीय दर्द हो रहा था वह किसी तरह सहन करने की असफल कोशिश कर रहा था उसके सिर की लपट शनैः शनैः बुझते हुए शून्य होती गयी।
"हाहाहाहा….! मेरे समक्ष कुछ क्षण भी नही टिक सका डार्क लीडर! स्वामी अब उस तुच्छ ग्रेमन को भी आपका यह सेवक मसलकर रख देने के पश्चात ही आपके चरणों में लौटेगा।" सुपीरियर लीडर डार्क लीडर के बुझ चुके सिर वाले शरीर को हवा में उठाते हुए अट्ठहास करता है।
तभी डार्क लीडर के सिर में तेजी आग की लपटें उठती हैं, दहकते हुए वह उस स्तम्भ के ऊपर तक पहुँच जाती हैं। सुपीरियर लीडर यह देखते ही आश्चर्यचकित होते हुए घबरा गया, डार्क लीडर के सिर से निकला ऊर्जा का एक भीषण वार सुपीरियर लीडर के शरीर के से जा टकराया। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया, रह गयी तो उस शरीर में शेष बची ऊर्जा का एक अंश जो विस्तार शक्ति के कारण सुरक्षित था परन्तु अब वह कुछ भी करने में असमर्थ था।
"जिसके पास त्रयी महाशक्तियों की शक्ति हो उसे इतना बेबस और लाचार समझने की भूल नही करनी चाहिए थी सुपीरियर लीडर!" घृणा भरी दृष्टि से उसके शरीर के बिखरे कणों को देखता हुआ वह आगे बढ़ा। डार्क लीडर के जीतने के साथ ही डार्क गार्ड्स यह युद्ध जीत चुके थे। आज सदियों बाद ग्रेमन की सेना स्याह ऊर्जा प्रतीक स्तम्भ को पार कर नराक्ष के साम्राज्य में कदम रखने वाली थी।
यहां यह युद्ध सामान्य ही प्रतीत हो रहा था परन्तु विस्तार के कारण उजाले के दुनिया में विभिन्न प्रकार के दहशत भरी घटनाएं घट रही थीं।
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सम्पूर्ण धरती सभी विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं से जूँझ रही थी, कहीं पर सुनामी, कहीं ज्वालामुखी तो कहीं पहाड़ ढहकर घाटी बन गया तो कहीं समुन्द्र के बीच रेगिस्तान बनने लगा। हिम के पिघलने की दर तेज हो गयी, साथ ही भीषण बरसात होने लगी, चारों ओर बिजलियों की कड़कड़ाहट और बादलो के टकराने से उत्पन्न गर्जन के स्वर सुनाई दे रहे थे। सभी बड़ी नदियों में जलस्तर बढ़ने लगा और बाढ़ आ गया। इस भयानक बाढ़ में संसार के कई प्रमुख नगर पानी में डूबने लगे। अब समुद्र का जलस्तर पहले से काफी ऊपर उठ चुका था। प्रकृति ने कभी ऐसा विभत्स खेल नही खेला था।
ज्योतिषियों के अनुसार अभी बरसात होने की संभावना तक भी नही थी परन्तु केवल एक ही दिन में प्रकृति बहुत बुरी तरह से खेल, खेल गयी थी। जो भी हो उनके अनुमान के अनुसार यह घटनाएं किसी प्राकृतिक प्रक्रिया के अनुसार बिल्कुल भी नही हो रही थी, तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे थे। आशंका थी कि इसके पीछे किसी अप्राकृतिक शक्ति का हाथ है। पूरी धरती पर भय का माहौल था अब दुनिया में कोई भी स्थान सुरक्षित नही था। दुनियाभर के महान तंत्र ज्ञाताओं ने अपनी तंत्र विद्याओं का प्रयोग कर इस प्रकोप को कम करने की कोशिश की परन्तु यह सब किसी महाशक्ति का किया धरा प्रतीत हो रहा था। किसी के रोके कुछ नही रुक रहा था। सम्पूर्ण पृथ्वी पर उजाले का विनाश तय था, परन्तु उजाले और अंधेरे का सामंजस्य यदि अधिक बिगड़ा तो उजाले के साथ अंधेरे का भी अंत नष्ट है वह भी किसी को पालने योग्य शक्ति नही रख पाएगा, सृजन एवं पालन के साथ ही अंत भी समाप्त हो जाएगा।
"आप इसी के लिए चुने गए हैं आचार्य! आपको पहले ज्ञात नही था परन्तु अब तो ज्ञात है न!" वायु के कणों से स्वर उभरा। आचार्य सूरज शुक्ल अपने आसपास के क्षेत्र के लिए सुरक्षा कार्य कर रहे थे, क्योंकि हिम पिघलने से गंगा नदी में भी भीषण बाढ़ आई हुई थी। इस समय वे डूबते सूरज के सम्मुख इन परिस्थितियों का जायजा लेने के लिए अकेले खड़े थे।
"यही की जिस बालक को मैंने पाला पोसा अपने पुत्र समान प्रेम किया वही इस संसार का अंत करने वाला था?" आचार्य के आँखों से नीर बहने लगे थे, उनका हृदय यह जानकर अत्यधिक दुखी एवं विचलित था।
"आपसे पूर्व वह मेरा पुत्र है आचार्य! मैं स्वयं अंधेरे में समाया हुआ हूँ, स्वयं ही अंधेरे का यह महान अंश हूँ। परन्तु इसमें ब्रह्मेश का कोई दोष नही है आचार्य यही नियति है, हम सब नियति के समक्ष विवश हिट हैं।" वायु में वही स्वर उभरा। उस स्वर में काफी दर्द और विनती का भाव भरा हुआ था।
"यह नियति क्यों है देव? सबको चुना गया! उसे मुझे आपको? हम सबको!" आचार्य का सारा ज्ञान पुत्र मोह के कारण विरक्त हो गया था। वे झुंझलाते हुए बोले, उनके आंखों में अब भी अश्रु की धार बह रही थी।
"अंत निश्चित है आचार्य! यह संसार का परम धर्म है। हम सब मात्र अपना कर्तव्य निभाते हैं, जाइये अब अपने पुत्र को समझाइए। वह अंधेरे की विशुद्ध ऊर्जा से बना एक विशुद्ध ऊर्जा विस्तार का धारक बन चुका है। वह अंधेरे का वह रहस्य बन चुका है जिसे कोई नही जानना चाहता, मैं चाहता हूँ उस कुंजी के द्वारा आप पुनः वह द्वार बंद करें जो उसके शक्तियों से खुला है।" हवा से घबराई हुई आवाज उभर रही थी।
"आप स्वयं अंधेरे तो नही हो सकते देव! क्योंकि अंधेरे ने ही उसे वह द्वार खोलने के लिए चुना होगा। यानी आप ब्रह्मेश के असली पिता है।" आचार्य आश्चर्यचकित होकर बोले।
"हम सिर्फ उसे इस संसार में ला सकते हैं आचार्य! यही हमारी नियति है, आपने उसे वह ज्ञान दिया है जो किसी अंधेरे के प्राणी को नही मिलता। जाइये उसके ज्ञान को प्रकाश को जगाइए ताकि उसमें उसका अंधेरा खो जाए और वह सब पहले की तरह ठीक कर सके।" वायु में एक हल्की सी झलक उभरी जो एक दंपति जोड़े की थी, दोनों के आंखों में अश्रु थे, आचार्य ने उन्हें देखना चाहा पर तब तक वह छवि अदृश्य हो चुकी थी।
"मैं अपना कर्तव्य अवश्य निभाउंगा देव!" आचार्य उन्हें नमन कर बोलें। उन्होंने उनके शक्ति को नही बल्कि अंधेरे के अंश होने के बाद भी उजाले और अपने पुत्र का हित चाहने वाले माता-पिता को, उनके देवत्व को नमन किया था।
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"एक मोर्चा तो हम जीत ही गए स्वामी!" वीर एक स्याह खोल में चलता हुआ बोल रहा था, उसके आसपास अन्य कोई दिखाई नही दे रहा था।
"विस्तार शक्ति के समक्ष अंधेरे की त्रयी महाशक्तियां भी नही टिक सकेंगी हाहाहा….!" नराक्ष का अट्ठहास भरा स्वर वहां गूँजने लगा।
"सारी दुनिया में आतंक मचा हुआ है स्वामी! इस युद्ध का असर बाहर की दुनिया में भी हो रहा है।" वीर बोला। उसके स्वर में प्रसन्नता भरी हुई थी।
"परंतु एक दुखद समाचार है हमने सुपीरियर आर्मी और लीडर को खो दिया स्वामी!" वीर बोला। उसके स्वर में कोई भी भाव नही था।
"जीतने के लिए कभी कभी हारना जरूरी होता है वीर! अब तुम उसकी सेना का सामना करोगे" अट्ठहास करता हुआ नराक्ष बोला। "और मैं यहीं ग्रेमन की प्रतीक्षा करने वाला हूँ… मेरी चाल से वह अवश्य ही तिलमिलाया हुआ होगा।"
नराक्ष की अट्ठहास उस जगह पूरी तरह से गूँजने लगी। वीर वहां से ओमेगा स्तम्भ की दिशा में बढ़ गया और नराक्ष अब भी अपनी आँखों में खुंखारता भरे हँस रहा था। अंधेरे में उसकी दहक रही आँखे और भयानक प्रतीत हो रही थी।
क्रमशः….
Kaushalya Rani
25-Nov-2021 10:16 PM
Nice ..suspenSe
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🤫
25-Jul-2021 01:23 AM
बहुत खूब कहानी इंट्रेस्टिन्ग मोड पर चल रही है।
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Zakirhusain Abbas Chougule
24-Jul-2021 09:52 AM
Bahut khoob
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